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31 मार्च 2023
पहले यह समझ
गिरत पड़त रामचन्द्र (रामनवमी के अवसर पर)
गिरत पड़़त रामचंद्र, सीखत घुटमनियाँ ।
चलत देख बलिहारी, माँ लेय बलैयाँ ।।
हाथ लिए धनुष बाण, देखत
चितवन सौं ।
उछर उछर सुनत रहे, पग की
नुपरन कौं ।।
गिरत पड़़त रामचंद्र, सीखत
घुटमनियाँ
चलत देख बलिहारी, माँ लेय
बलैयाँ।।
हाथ लिए धनुष बाण, देखत
चितवन सौं।
उछर-उछर करत रहे, गोदी ले
मैयाँ ।।
30 मार्च 2023
पहले यह समझ
गीतिका
29 मार्च 2023
चैत्र नवरात्रि
देवी के अनगिनत रूप हैं, मातृभवानी जानिए।
कहीं अर्द्धनारीश्वर में है, शिवा शिवानी जानिए।
चामुण्डा , माँ अम्बे काली, है विंध्याचलवासिनी,
महामाया है कालरात्रि है, यही सयानी जानिए।
मुक्तक-2
सप्त मातृकायें दस विद्या, नौ दुर्गा नवरात्रि में।
व्रत कर फलाहार लें करना जगराता नवरात्रि में।
माँ कल्याण करे होती है, भक्तों के सान्निध्य भी,
क्षमाशील बन पूजें करती, चमत्कार नवरात्रि में।
28 मार्च 2023
मन हो जाए गंगा-यमुना-सरस्वती
गीतिका
छंद- लावणी
हे वागीशा हंसवाहिनी,वीणापाणि माँ सरस्वती ।
श्वेत पुष्प चरणों में अर्पित, माँ स्वीकारों है विनती ।1।
माते है साष्टांग
दंडवत, निर्मल मन मेरा कर दो,
बुद्धि प्रखर हो ऐसा वर दो, कभी न मुझसे हो गलती ।2।
गति जीवन की हो निर्बाधित, चलती रहे लेखनी बस,
समय कठिन हो
कण्टकीर्ण पथ, साँसें तुझे रहें भजती ।3।
ना दुर्वचन
कहे जिह्वा ना आए ही दुर्भाव कभी,
जीवन हो निष्काम
कर्म को सदा समर्पित हो हस्ती ।4।
सबको ही
सद्बुद्धि मिले माँ, हे पद्मजा प्रगति श्रेया,
आकुल का मन हो
जाए माँ गंगा-यमुना-सरस्वती ।5।
27 मार्च 2023
सच बोल भी सकता नहीं
छंद- मनहंस (वार्णिक)
मापनी- 112 121 121 211 212 (स ज ज भ र)
पदांत- भी सकता नहीं
समांत- ओल
तब जान लो दिल खोल भी सकता नहीं।
हर वक़्त वो कम तोल भी सकता नहीं।
कटुता कहीं पर घोल भी सकता नहीं।
हर शख़्स के सर ढोल भी सकता नहीं।
जब चीज़ बंद टटोल भी सकता नहीं।
6 मार्च 2023
निर्मल मन मेरा कर दो ( सरस्वती वंदना)
छंद- लावणी

बुद्धि प्रखर हो ऐसा वर दो, कभी न मुझसे हो गलती।
समय कठिन, हो कण्टकीर्ण पथ, साँँसे तुझे रहें भजती।
जीवन हो निष्काम कर्म को, सदा समर्पित हो हस्ती।
'आकुल' का मन हो जाए माँँ, गंगा-यमुना-सरस्वती।
3 मार्च 2023
याद है
गीतिका
छंद- मरहट्ठा माधवी
विधान- 29 मात्रा भार। 16, 13 पर यति अंत 212
पदांत- याद है
समांत- अड़ी
ज्वर में दलिया और मूँग की, सौंधी खिचड़ी याद है।
घी
में पड़े हुए कपड़े से, रोटी चिपड़ी याद है ।
सर्दी
में दिन भर जलती वो, टूटी सिगड़ी याद है ।
लाते
जंगल से झड़बेरी, छिप कर खाते बाँट कर,
खेलों
में गुलामडाली की, धौलें पिछड़ी याद है ।
गर्मी
की वो छाछ राबड़ी, उमस, मसहरी, लाय सब ,
कभी
घमोरियों में मुल्तानी मिट्टी रगड़ी याद है।
होरी
पर गाते रसिया पर, सब ठंडाई भाँग पी,
चौपालों
में बैठ ताश की, खेली छकड़ी याद है।
सब्जी
और किराना मिलता, था बदले में अन्न के,
बनिया
जो करता जल्दी से टेढ़ी तखड़ी याद है ।
रखते
देखा माँ को कुछ-कुछ, कभी ताख या नाज में,
जब
भी बापू मदद माँगते, खुलती हटड़ी याद है ।
महामारियों
की तो जैसे, जन्म जात दुश्मनी रही,
चेचक
से भाई बिछड़ा, इक बेटी बिछड़ी याद है।
लोग
अंधविश्वासों की अब, ‘आकुल’ भेंट चढ़ें नहीं,
खालीपन
तो भर जाता पर, लगे थेगड़ी याद है।
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