31 अक्तूबर 2017

दो मुक्‍तक



उच्‍छ्वास
घोर निराशा में प्राय: हम, लेते हैं उच्‍छ्वास.
जैसे हारा थका खिलाड़ी, खो देता है आस.  
कहते भी हैं सफलता की, कुंजी है असफलता,
जितना चलें सफलता उतनी, बढ़ें लिए विश्‍वास.  


नि:श्‍वास   
लम्बी साँसे ले कर छोड़ें, यही क्रिया नि:श्‍वास.
एक जगह टिक कर मत रहना, करतें रहें प्रवास.
भ्रमण, योग से बनता है, जीवन में तन-मन स्‍वस्‍थ,
स्‍वस्‍थ निरोगी तन में रहता, है ईश्‍वर का वास.

30 अक्तूबर 2017

तुम उड़ान उतनी ही भरना (गीतिका)



छंद- आल्‍ह 
16//15 चौपाई की अर्द्धाली// चौपई, अंत 21)

इतना ले लो इतना पढ़ लो , जीवन में तुम सबका ज्ञान.
आसमान मुट्ठी में भर लो,  फिर भरना अनगिनत उड़ान.

है उड़ान भी दाँव, चलो मत, दम हो तब भरना परवाज,
दुनिया समझो फिर तुम खेलो, करना पूरे सब अरमान.

सपनों की दुनिया भी होती, मृगतृष्‍णा सी अनबुझ प्‍यास,
मत तुम उन दु:खों को झेलो, जिनका कभी न हुआ निदान.

चाहत मत चकोर सी रखना, नित्‍य बदलता सूरत चाँद,
जो रहता भ्रम में मत ठेलो, मत तोड़ो उसका अभिमान.

जुड़े रहोगे यदि जमीन से, स्‍वर्ग मिलेंगे चारों ओर,
मौसम के गुलजार मिलेंगे, और मिलेंगे देव ठिकान.

हर उड़ान से पहुँचोगे जब, तुम सूरज के और करीब,
वहाँ आग के सिवा मिलेगा, तुमको कोई नहीं निशान.

इसीलिए आकाश शून्‍य है, है उसका परिमाण अनंत,
तुम उड़ान उतनी ही भरना, पंखों में नहिं भरे थकान.

29 अक्तूबर 2017

कुछ मुक्‍तक

उत्कृष्ट
उत्कृष्ट वह जो इष्ट का उत्कर्ष दे.
उत्कर्ष के लिए अभीष्ट संघर्ष दे.
साधना, उपासना और सत्कर्म से,
सिद्ध कर दे जो मनोरथ अति हर्ष दे.

निकृष्ट
निकृष्ट वह जो आदर्शों का न सम्मान करे.
सिद्धांतों और नियमों का जो अपमान करे.
तुच्छ है हर वो इष्ट जो हो स्वार्थ से प्रेरित,
अभीष्ट के लिए जो व्यर्थ अनर्गल गान करे.
मुक्‍तक
भोर होती है, लिए एक उत्‍साह.
जिंदगी को देती है नेक सलाह.
कुछ कर गुजर न लौटेंगे फिर ये पल,
लूट वा-वाह या बैठ के भर आह.  
मुक्‍तक
नहीं जानती जीना कितना दुखदायी होगा.
इक पल में सपनों का महल धराशायी होगा.   
फैंके पत्‍थर मेरे घर पर कहा जमाने ने,
काश खबर होती कि तू इक आततायी होगा.
उद्यम
पूँजी दे बस ब्‍याज ही , भाड़ा भवन दिलाय.
कर्माश्रय भृति ही मिले, साहस भाग्‍य जगाय.
उद्यम ही सत्कर्म है, कर्म बिना सब व्‍यर्थ,         
भृति, पूँजी, साहस, भवन, ये ही अर्थ प्रदाय.
आलस्‍य
कर्मनिष्‍ठ होते सबल, कर्मठ भाग्‍य बनाय.
कर्म करे सब कुछ मिले, कर्महीन से जाय.
कर्महीन आलस्‍य से, लुटे खोय हर चीज,
समय बिसारे हर दफा, समय न वापिस आय.

27 अक्तूबर 2017

परस्‍पर प्‍यार फैलाओ (गीतिका)



छंद- विजात- 
मापनी- 1222 1222

जमाने से न टकराओ.
नहीं बेकार बल खाओ.

न बदलेगी कभी दुनिया 
बदल क्यों न तुम्हीं जाओ.

नहीं तुमसे जमाना है
स्‍वयं के मन को समझाओ

न उलझो झंझटों में तुम
प्रभू में मन को उलझाओ 

मिलेगी राह सच्‍ची यदि
परस्‍पर प्यार फैलाओ.
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26 अक्तूबर 2017

बस बीमार न हों सर्दी में (गीतिका)



छंद- ताटंक (सम मात्रिक) (16/14 और पदांत तीन गुरुओं से)
पदांत- में
समांत- आई


सर्दी में स्‍वेटर, मफलर में, कम्‍बल सौर, रजाई में.
शाल, गुलूबंद, बंदर टोपा, जर्सी, कोट, दुलाई में.

जितना पहनो उतनी सर्दी, लगती है तन को ज्‍यादा,
जितना बैठो उतनी अच्‍छी, लगती धूप सिकाई में.

जल भी गरम नहाने को हो, गरम-गरम हो खाने को,
घिरा रहे आलस्‍य चाह हो, पड़ें रहें गरमाई में.

खेल-कूद, व्‍यायाम तैरना, आग, अलाव सभी भायें,
चोट लगे, बिस्‍तर पकड़ें पड़, जायें शौक खटाई में. 

बस बीमार न हों सर्दी में, ध्‍यान रखें बस यह ‘आकुल’,
वर्ना सर्दी बीतेगी फिर, लंघन और दवाई में.