20 अक्तूबर 2017

खाली होगी कभी न झोली (गीतिका)

छंद- द्विगुणित चौपाई
पदांत-लेले 
समांत- अता

सूरज से अपने तन को तप, चंदा से शीतलता लेले. 
पेड़ों से तू ले नम्रता, फूलों से मादकता लेले.   

सीख अँधेरे से तू छिपना और उजाले से छा जाना,
समय साध निश्चिंत बनेगा, उससे ये सक्षमता ले ले   

ज्‍यों गिरि स्‍वत: बनाते हैं वन, होते हैं प्रशांत सागर भी,
दावानल बड़वानल कभी न चेतें, ये चेतनता ले ले.  

स्‍वर्ग धरा बन जाए आकुल, मानव छले न काश प्रकृति को
निस्‍सृत जड़ी है संजीवनि, प्रकृति से अजर अमरता ले ले

मान न मान ये सब कर पाया, कर्म अगर जीवन में ‘आकुल’, 
खाली होगी कभी न झोली, इतनी घोर सफलता ले ले.

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