18 अक्तूबर 2017

ज्‍योति-पर्व (गीतिका)

जब इक दीपक से होता है शुभारंभ, 
करने को दूर अंधकार का साम्राज्य.
आओ करें हम ज्योति पर्व पर आज ही,
दृढ़ संकल्प हो अब दीपों का साम्राज्य।।1।।


घर-घर में जब दीप जलें उत्साह भरे,
मनती हर घर में खुशियों की दीवाली,
साफ-सफाई, रँग-रोगन, कोना-कोना,
सब ही घरों में हो शुचिता का साम्राज्य।।2।।

घर वंदनवारों, रंगोली से शोभित,
धूम पटाखों की लक्ष्मी का हो आह्वान,
श्रीगणेश के संग बिराजें सरस्वती,
हो धन, लाभ-शुभ, बुद्धि,वृद्धि का साम्राज्य।।3।।

जो धन के मद में रहता हर दम आकुल
बने दिवाला वह अकसर ही दीवाली पर,
उसके जीवन में खुशियाँ भी आती तो हैं,
खुशियों से वंचित रहता उसका साम्राज्य।।4।।

आओ अब इस ज्योति पर्व के अवसर पर
फैलायें उन्नति समृद्धि का हम प्रकाश,
हटे घोर अवसाद, द्वेष का अंधकार,
जले अखंड ज्योति हो प्रेम का साम्राज्य।।5।।

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