छंद-
गीतिका
मापनी-
2122 2122 2122 212
पदांत-
सीख ले
डर न
सबको साथ ले तू डर भगाना सीख ले.
जो नहीं
डरता उसी का है जमाना सीख ले.
फूल
ने क्या शूल से डर कर न दी खुशबू कभी,
कंटकों
की राह में तू पग जमाना सीख ले.
दु:ख
दे जाता न हँसने की सज़ा अकसर हमें
बीच
में बच्चों के’ रह कर खिलखिलाना सीख ले.
चाह छूने की गगन को, वो जमीं से बेखबर,
तू
जमीं बंजर न हो पौधे लगाना सीख ले.
मेघ
बरसें पर्वतों पे वन घने बसते स्वयं
प्यार
यूँ बरसे कि पत्थर दिल भी’ गाना सीख ले.
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