8 अक्तूबर 2017

गढ़ी गीतिका मित्र (गीतिका)



पदांत- गीतिका मित्र
समांत- अढ़ी

मात्र मापनी में नहीं, गढ़ी गीतिका मित्र.
सहज और स्‍वच्‍छंद थी, पढ़ी गीतिका मित्र.

कथ्‍य शिल्‍प में जान थी, पैठी मन में बात,
नहीं एक विद्वान् सर, चढ़ी गीतिका मित्र.

मिली वा-वाह भी बहुत, पर वे थे बस मौन,
इसी हठाग्रह की वजह, चिढ़ी गीतिका मित्र.

थे हिंदी के शब्‍द सँग, प्रचलित उर्दू शब्‍द,
ले खटास मन में बनी, कढ़ी गीतिका मित्र.

अलग-थलग होने लगी, रचनायें स्‍वच्‍छंद,
छंद किताबों में रही, मढ़ी गीतिका मित्र. 

रचनायें आधार हों, नहीं छंद से बैर,
न हो दुराग्रह से जली, कुढ़ी गीतिका मित्र

अब स्‍वच्‍छंद गगन उड़ी, लेकर युग्‍म प्रवीण,
’मुक्‍तक लोक’ विधान से, बढ़ी गीतिका मित्र 

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