30 अक्तूबर 2017

तुम उड़ान उतनी ही भरना (गीतिका)



छंद- आल्‍ह 
16//15 चौपाई की अर्द्धाली// चौपई, अंत 21)

इतना ले लो इतना पढ़ लो , जीवन में तुम सबका ज्ञान.
आसमान मुट्ठी में भर लो,  फिर भरना अनगिनत उड़ान.

है उड़ान भी दाँव, चलो मत, दम हो तब भरना परवाज,
दुनिया समझो फिर तुम खेलो, करना पूरे सब अरमान.

सपनों की दुनिया भी होती, मृगतृष्‍णा सी अनबुझ प्‍यास,
मत तुम उन दु:खों को झेलो, जिनका कभी न हुआ निदान.

चाहत मत चकोर सी रखना, नित्‍य बदलता सूरत चाँद,
जो रहता भ्रम में मत ठेलो, मत तोड़ो उसका अभिमान.

जुड़े रहोगे यदि जमीन से, स्‍वर्ग मिलेंगे चारों ओर,
मौसम के गुलजार मिलेंगे, और मिलेंगे देव ठिकान.

हर उड़ान से पहुँचोगे जब, तुम सूरज के और करीब,
वहाँ आग के सिवा मिलेगा, तुमको कोई नहीं निशान.

इसीलिए आकाश शून्‍य है, है उसका परिमाण अनंत,
तुम उड़ान उतनी ही भरना, पंखों में नहिं भरे थकान.

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