छंद- सरसी
(विधान- चौपाई की अर्द्धाली+दोहा का समचरण 16,11 पर आधारित मुक्तक द्वय.)
अनिवार्य
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शब्द पतन नहिं मान्य छंद हैं, ऐसे भी कुछ एक.
जो ज्ञानी निष्णात गुणी हैं, मिलते हैं कुछ एक.
गुरु, लघु भी अनिवार्य छंद में, कुछ ऐसे हैं छंद,
पर स्वच्छंद छंद भी दिल को, छूते हैं कुछ एक.
ऐच्छिक
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हो समांत हो पदांत तो ही, बने गीतिका रूप.
गुरु-लघु ऐच्छिक नहीं बनाता, छंद विशेष स्वरूप.
बिना ज्ञान कोशिश करना भी, करता श्रम बेकार,
होता है सिरदर्द करें श्रम, हो सिर पर ज्यों धूप.
(विधान- चौपाई की अर्द्धाली+दोहा का समचरण 16,11 पर आधारित मुक्तक द्वय.)
अनिवार्य
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शब्द पतन नहिं मान्य छंद हैं, ऐसे भी कुछ एक.
जो ज्ञानी निष्णात गुणी हैं, मिलते हैं कुछ एक.
गुरु, लघु भी अनिवार्य छंद में, कुछ ऐसे हैं छंद,
पर स्वच्छंद छंद भी दिल को, छूते हैं कुछ एक.
ऐच्छिक
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हो समांत हो पदांत तो ही, बने गीतिका रूप.
गुरु-लघु ऐच्छिक नहीं बनाता, छंद विशेष स्वरूप.
बिना ज्ञान कोशिश करना भी, करता श्रम बेकार,
होता है सिरदर्द करें श्रम, हो सिर पर ज्यों धूप.
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