मापनी- 2122 2122 2122 212
पदांत- सीख ले
समांत- आना
मन अगर मन का करे तो हर बहाना सीख
ले.
फूँक कर देखे तमाशा घर जलाना सीख ले.
मनचला कोई परिन्दा, तो नहीं मन जान
ले,
जा उड़े आकाश पर वह, पर चलाना सीख
ले.
दृढ़ अगर व्यक्तित्व करना है
अकेले कर भ्रमण,
मौन रह कर दौड़ते मन, को बचाना सीख
ले.
साँस क्यों मंथर चले इसका समझ ले
राज़ तू
धैर्य से जीवन बिता मन, को मनाना
सीख ले.
फिर
भी’ मन भटका करे जो, शांति की हो चाहना
जा शरण में तू प्रभू के, लौ लगाना
सीख ले.
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