किरीट
सवैया (भगण X 8)
छंद
- " मदिरा सवैया " (वर्णिक ) मुक्तक
211 211 211 211 211 211 211 2
चाह नहीं कि बराबर हो मुझ सा न कहीं घर-बाहर हो.
चाह यही प्रभु 'आकुल' की न कदापि निरादर हो उस से,
छंद - मत्तगयंद सवैया (वार्णिक छंद )
शिल्प विधान- 7 भगण +22
मापनी - 211 211 211 211 211 211 211 22
(उक्त छंद में गुरु के स्थान पर दो लघु की छूट नहीं होती है।)
211
211 211 211 211 211 211 211
चाह
नहीं कि भरा घर हो धन-दौलत नौकर-चाकर हो प्रभु.
चाह नहीं कि बराबर हो मुझ सा न कहीं घर-बाहर हो प्रभु.
चाह यही प्रभु 'आकुल' की न कदापि निरादर हो उस से बस,
चाह नहीं कि बराबर हो मुझ सा न कहीं घर-बाहर हो प्रभु.
चाह यही प्रभु 'आकुल' की न कदापि निरादर हो उस से बस,
चाह
यही कि जरा-तन से बस दानवता न उजागर हो प्रभु.
211 211 211 211 211 211 211 2
1+1=2
वर्जित है
[सात
भगण (s।) + गुरु]
चाह
नहीं कि भरा घर हो धन-दौलत नौकर-चाकर हो.चाह नहीं कि बराबर हो मुझ सा न कहीं घर-बाहर हो.
चाह यही प्रभु 'आकुल' की न कदापि निरादर हो उस से,
चाह
यही कि जरा-तन से बस दानवता न उजागर हो.
24
घनाक्षरी// मनहरण कवित्त (वार्णिक)
विधान-
8,8,8,7, पूर्ण वर्णों की गणना ही.
1
भोर
भई लाली लख, नीड़ सौं छूटें है खग
भयो
चहुँ ओर रव, आज होरी आई है.
ग्वाल
बाल श्याम संग, लिये पिचाकारी रंग
झाँझ
अलगोजा चंग, बाँसुरी बजाई है.
नारि
नर अटारी सौं, द्वार सौं तिबारी सौं
रंग
कूँ उड़ाय चले, गारी भी सुनाई है.
गाय
के धमार छंद, साँवरे आनंद नंद
रंग
में रँगाय के दी, होरी की बधाई है.
2
सारौ
बिंदावन धाम, गोकुल व नंदगाम
और
बरसाने की तो, होरी जो मनाहि है
रेणु
भी अबीर बने, कालिंदी को तीर बनै
ब्रजबासिनों
के संग, होरी जो खिलाहि है
बड़भागी
बने कोय, जनम सफल होय
फल
गोलोक सो जन्म, धन्न ही बनाहि है
आज
भी कहें पथिक, होरी के सभी रसिक
नारिन
में बिरज की, राधा ही समाहि है.
छंद - मत्तगयंद सवैया (वार्णिक छंद )
शिल्प विधान- 7 भगण +22
मापनी - 211 211 211 211 211 211 211 22
(उक्त छंद में गुरु के स्थान पर दो लघु की छूट नहीं होती है।)
1
पीर हि पीर ब सी मन में, कछु
सूझत नाहि क हूँ कछु द्वारे.
नंदकुमार हमार सखा, बहु साथ
रहे सँग साँझ सकारे.
जाय कहो नट नागर सौं हम विप्र
सुदाम हुँ मित्र तुम्हारे.
बाँध कठोर कियो मन जाय कही
मुख द्वारहुँ जाय के ठारे
2
जौंहि कहौ कि सुदाम खड़े झट
लेउत्तरि बेगहिं किलकारे
दौरि परे सुन मित्र सुदाम
सुँ द्वारहि आकुल बाँह पसारे.
बोल सके न कछू उर भींच सुदाम
भि बोल सकै कछु नारे
देख भये चकिताचित द्वार हुँ रानिजु
रुक्मिनि कौन पधारे.
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