छंद- सिंधु
मापनी- 1222 1222 1222
मापनी- 1222 1222 1222
तुम्हे जी भर के’ भी देखा नहीं जाना*.
जरा ढलने तो' दो दिन चाँद उगने दो,
ज़माना जान जाएगा ये’ अफ़साना.
नहीं छुप-छुप के' मिलना प्यार होता है
मगर देता ज़माना कब है’ परवाना*.
दिवानों की यही आफ़त है’ दुनिया में,
बहुत मुश्किल खुशी के संग जी पाना.
बदलता चाँद अपनी रोज़ फ़ितरत है,
वफ़ा करना, न कर पाओ तो’ मत आना.
*जाना- प्रिये, प्रेमी, *परवाना- इजाजत
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