छन्द -- मंगलवत्थु [ मापनी
मुक्त]
22 मात्रायें ,11, 11 यति के पूर्व व बाद में त्रिकल, अंत 22 (वाचिक)
जब वैमनस्य बढ़े, हो मन:स्थिति बोझिल,
जीवन का है मर्म, कर्म तप धर्म करे
कष्ट दुखों के सदा, हुए क्रम दूर घने
22 मात्रायें ,11, 11 यति के पूर्व व बाद में त्रिकल, अंत 22 (वाचिक)
पदांत- दूर घने
समांत- अम
ज्योत से ज्योत जली, हुए तम दूर घने.
प्रीत
से प्रीत पली, हुए ग़म दूर घने.
जब वैमनस्य बढ़े, हो मन:स्थिति बोझिल,
न
प्रीत न रीत फली, हुए हम दूर घने.
जीवन
रिश्ते बिना, चलें दिन कितने डग,
सोच
सोच अंतत:, हुए भ्रम दूर घने.
हारा
अहं सदैव, सब्र हर दम जीता,
जो
भी रहा विनम्र, हुए खम दूर घने.
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