गीतिका
छंद- द्विगुणित समानिका
मापनी- 21 21 21 2 // 21 21 21 2
कर्म कीजिए सभी, कर्म को न त्यागना.
कर्म ही तो' धर्म है, कर्म है उपासना.
लाभ-हानि-भाग्य सब, कर्म से जुड़े हुए,
कर्म जीत-हार है, कर्म से न भागना.
जन्म का भी' हेतु है, कर्म-चक्र से बँधा,
धर्म-चक्र से बँधी, व्यक्ति की स्व भावना.
सूर्य-चंद्र, रात-दिन, दु:ख-सुख, जनम-मरण,
कर्मगति के’ फल हैं' सब, जीतना व हारना.
इसलिए न जिंदगी, दाँव पर लगाइये.
कर्मनिष्ठ बन के’ ही, भाग्य को सँवारना.
छंद- द्विगुणित समानिका
मापनी- 21 21 21 2 // 21 21 21 2
कर्म कीजिए सभी, कर्म को न त्यागना.
कर्म ही तो' धर्म है, कर्म है उपासना.
लाभ-हानि-भाग्य सब, कर्म से जुड़े हुए,
कर्म जीत-हार है, कर्म से न भागना.
जन्म का भी' हेतु है, कर्म-चक्र से बँधा,
धर्म-चक्र से बँधी, व्यक्ति की स्व भावना.
सूर्य-चंद्र, रात-दिन, दु:ख-सुख, जनम-मरण,
कर्मगति के’ फल हैं' सब, जीतना व हारना.
इसलिए न जिंदगी, दाँव पर लगाइये.
कर्मनिष्ठ बन के’ ही, भाग्य को सँवारना.
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