परस्पर प्यार फैलाओ (गीतिका)
छंद- विजात-
मापनी- 1222 1222
जमाने से न टकराओ.
नहीं बेकार बल खाओ.
न बदलेगी कभी दुनिया
बदल क्यों न तुम्हीं जाओ.
नहीं तुमसे जमाना है
स्वयं के मन को समझाओ
न उलझो झंझटों में तुम
प्रभू में मन को उलझाओ
मिलेगी राह सच्ची यदि
परस्पर प्यार फैलाओ.
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