छंद- मरहट्ठा माधवी (सम मात्रिक)
स्वर्ग कहा जाता है जिसको, नर्क बना कश्मीर है.
विधान- चौपाई+दोहे का विषम चरण (16,
13)
पदांत-है
समांत- ईर
दुश्मन यही समझ बैठा है, जंग लगी शमशीर है.
उससे व्यर्थ अमन की आशा, राह ढूँढ़ता खून की,
चुना है जिसने आत्मघात को, ही अपनी तकदीर है.
लाशों पर चल स्वप्न देखता, धर्मयुद्ध की जीत का,
भूल गया भारतीय संस्कृति, इक अभेद्य प्राचीर है.
स्वर्णिम इतिहासों के साक्ष्य, आज बने हैं खंडहर,
बारूदों के बल पर मिलती, दो गज की जागीर है.
गोली-गाली की समझे जो, भाषा ‘आकुल’ दया नहीं,
समय आ गया है अब देना, उसको एक नज़ीर है.
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