छंद- विधाता
मापनी- 1222 1222 1222 1222
पदांत-
धरती पर
समांत-
आन पढ़ें इतिहास को कितने हुए बलिदान धरती पर.
अमन की राह पर आयें न अब तूफान धरती पर.
बदल जायें न बदले की रखें अब भावना दिल में,
बने कोई नहीं अब जान कर अनजान धरती पर.
हवाओं ने सदा गाये हैं’ हरदम गीत खुशियों के,
लिखे इंसान ने ही हैं मरसिया गान धरती पर
करे जो भी पहल आतंक के साये में’ चलने की,
नहीं दुनिया में’ उससे बढ़ के’ है हैवान धरती पर.
रहें सब प्रेम से सरहद परे आसान धरती पर.
सदा त्योहार, पर्वों ने तो’ पाटी खाइयाँ अकसर,
बनाता है दिलों में खाइयाँ इनसान धरती पर.
अगर आयें समंदर में कभी लहरें बगावत की,
समझना गंगा’-यमुना का है’ यह ऐलान धरती पर.
न कहना फिर कि ऐ ‘आकुल’ किया होता सबर कुछ तो,
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