छंद-
ताटंक
वृक्षों से धरती पर आती हैं ऋतु आते मेघ घने,
पदांत-
आएगी
समांत-
आली
है जड़ से जो जुड़ा हुआ इक, दिन हरियाली आएगी.
आँधी आये जब
समझो इक, दिन खुशहाली आएगी.
वृक्षों से धरती पर आती हैं ऋतु आते मेघ घने,
तुम काटोगे वृक्ष जिंदगी में बदहाली आएगी.
झूले नहीं पड़ेंगे नहीं सुनाई देंगे सावन गीत,
छुट-फुट बरखा करने सावन की रुत खाली आएगी.
वैसे ही अब पंख पखेरू कहाँ चहचहाते दिन भर,
गीदड़ श्वानों की टोली अब बनी रुदाली आएगी.
चौपालें, पनघट सूने, हैं कुँए बावड़ी सूनी हैं,
वृक्ष काट खुश है मानव उसकी भी पाली आएगी.
ना ही फूटेंगे टेसू, कचनार, हारसिंगार यहाँ,
छायेगा
न बसंत व होली भी न गुलाली आएगी.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें