विधान- 11, 11 पर यति अंत 2 गुरु से
पदांत- है
समांत- आली
जली ज्योत से ज्योत, मनी दीवाली है.
पली प्रीत से प्रीत, बढ़ी खुशहाली है
वैमनस्य को ओढ़, बढ़ें मन की दूरी,
नहीं फली जब प्रीत, बढ़ी बदहाली है.
जीवन रिश्ते तोड़, चला है कितने डग,
मिले अकेले लोग, दृष्टि जब डाली है.
हारा अहं सदैव, सब्र हर दम जीता,
जो भी रहा विनम्र, प्रतिष्ठा पाली है.
आज हुए दिव्यांग, अपंग कहाते थे,
बधिया बैल न आज, जोतता हाली है.
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