समांत- ओलोगे.
जिस दिन हीन ग्रंथि खोलोगे.
उस दिन तुम सबके हो लोगे
मिलता क्या है बैर भाव से,
ज़हर दिलों में तुम घोलोगे.
ज़हर दिलों में तुम घोलोगे.
दूर रहेंगे तुम से सब जन,
किस के दर दुखड़ा ढोलोगे
चैन नहीं पाओगे 'आकुल',
व्याकुल इत उत
ही डोलोगे.
प्रेम अमोल व प्रेम असीमा,
बढ़ता ही है जब तोलोगे.
दे कर ही मिलती हैं खुशियाँ,
स्वयं एक दिन तुम बोलोगे.
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