छंद-
लावणी
जीवन
को अध्यात्म तरफ मोड़ा है शक्ति मुझे देना,
‘आकुल’
यह जीवन अमूल्य है, नहीं मिला मुझको यूँ ही,
विधान-
16, 14 अंत गुरु वर्ण से
पदांत-
में लगा रहूँ
समांत-
अन
दो
आशीष शारदे माँ साहित्य सृजन में लगा रहूँ.
कैसे
भी नीरोग रहूँ दिन-रात मगन में लगा रहूँ.
घूमूँ
नित मैं मंदिर, बाग-बगीचे, नदी किनारे भी,
कभी
न पडूँ कुसंग न कोई किसी व्यसन में लगा रहूँ
बहुत
लिया आशीष सभी से कुछ दे सकता हूँ तो दूँ,
और
नहीं तो बाकी जीवन अभिनंदन में लगा रहूँ.
ध्यान-योग
से दान-धर्म से पर्यूषन में लगा रहूँ.
जीवन
सिद्ध करूँ लोकायन, सृजनायन में लगा रहूँ.
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