12 मार्च 2019

दो आशीष शारदे माँ (गीतिका)

छंद- लावणी
विधान- 16, 14 अंत गुरु वर्ण से
पदांत- में लगा रहूँ
समांत- अन

दो आशीष शारदे माँ साहित्‍य सृजन में लगा रहूँ.     
कैसे भी नीरोग रहूँ दिन-रात मगन में लगा रहूँ. 

घूमूँ नित मैं मंदिर, बाग-बगीचे, नदी किनारे भी,
कभी न पडूँ कुसंग न कोई किसी व्‍यसन में लगा रहूँ  

बहुत लिया आशीष सभी से कुछ दे सकता हूँ तो दूँ,
और नहीं तो बाकी जीवन अभिनंदन में लगा रहूँ.

जीवन को अध्‍यात्‍म तरफ मोड़ा है शक्ति मुझे देना,
ध्‍यान-योग से दान-धर्म से पर्यूषन में लगा रहूँ.

‘आकुल’ यह जीवन अमूल्‍य है, नहीं मिला मुझको यूँ ही,
जीवन सिद्ध करूँ लोकायन, सृजनायन में लगा रहूँ.

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