गीतिका
छंद- पंचचामर (वर्णिक)
पदांत- प्रेम में
समांत- आद
न हो कटाक्ष बात में, न हो विवाद प्रेम में।
जिएँ सभी खुशी खुशी, न हो विषाद प्रेम में।
करें विचार व्यक्त वो, न हो तनाव व्यर्थ ही,
न हो विरुद्ध धर्म के न हो जिहाद प्रेम में।
कहीं कभी दुराव हो लगाव हो तनाव हो,
बढ़े न दूरियाँ कभी न हो प्रमाद प्रेम में ।
न शर्त हो,
न दाँव हो, छले नहीं, न खेल हो,
असीम हो, न
बंध हो न हो मियाद प्रेम में।
कभी कहीं
नसीब से मिले कभी मिले नहीं,
पवित्र
भेंट ईश्वरीय है मुराद प्रेम में ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें