रोला
गीतिका
विधान- 11,
13 पर यति। विषम चरणांत गुरु-लघु, सम चरणांत दो गुरु वाचिक
पदांत- हो
समांत- अन
वंदन हो
साष्टांग, झुका कर शीष नमन हो ।
कर से करें
प्रणाम, विनय पट बंद नयन हो।
राम राम के
संग, तनिक मुसकान बिखेरें,
मान, पान
अरु पुष्प, हार से अभिनन्दन हो।
भजन कीर्तन
जाप, प्रफुल्लित मन को करते,
ईश्वर का
हो ध्यान, सिद्ध हर एक वचन हो।
ऐसे हों
संस्कार, पीढ़ियाँ इनको सीखें,
चिन्तन
मन्थन और मौन रह सदा मनन हो।
बस ना हो
अपमान, रखें सौहार्द सभी से,
सम्यक
हो व्यवहार, यही जीवन दर्शन हो।
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