14 अगस्त 2024

कब तक हम आजादी का यूँ, जश्‍न मनाएँगे?

कब तक हम आजादी का यूँ, जश्‍न मनाएँगे?
बढ़ते आक्रोशों के यक्ष प्रश्‍न दबाएँगे,

मुड़ कर देखें चहूँ दिशाएँ हवा नहीं सुरभित,
क्‍या कागज़ के फूलों से निधिवन सजवायेंगे ?
कब तक हम..........

द्रोपदियाँ लुट रहीं देखते दु:शासन तांडव,
अभी न कोई कृष्‍ण यहाँ है विवश भद्र पांडव,
द्यूत शकुनि का अंध बने धृतराष्‍ट्र कई बैठे,
भीष्‍म धराशायी होगें चीखेंगे कारंडव,
कितनी आहुतियों से कब तक हवन कराएँगे?
कब तक हम..........

घर घर में फहराएँ झंडा चलो और इक बार,
नहीं शत्रु का दंभ मिटेगा गठबंधन सरकार,
और एक महाभारत के हैं अब आसार यहाँ,
घिरा हुआ भारत है भीतर-बाहर हाहाकार, 
कोविध अपनी संस्‍कृति का वटवृक्ष लगाएँगे?
कब तक हम..........

प्रकृति ढा रही कह्र मच रही चीख पुकारें,
मुफ्त योजनाओं से दिवालिया हैं सरकारें,
नहीं दवायें, वेतन, रोजगार से दुखी प्रजा,
फिर हारी है जनता फैलाती भ्रम सरकारें,
जन हुतात्‍माओं के क्‍या अब बुत लगवायेंगे?
कब तक हम ..........

कब तक हम आजादी का यूँ, जश्‍न मनाएँगे?



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