17 अगस्त 2024

इस जिह्वा में विष अमरित दोनों रहते हैं

गीतिका 
छंद- आवृत्तिका / सार्द्ध चौपाई
विधान- प्रतिचरण 24 मात्रा, 16, 8 पर यति, अंत दो गुरु वाचिक से। 
पदांत- हैं
समांत- अहते 

इस जिह्वा में विष अमरित दोनों रहते हैं।
रस कोई भी हो जिह्वा से, ही बहते हैं।

बोली, प्रवचन, व्‍यक्‍त करेंगे, इससे जैसा
अंकुश ना हो विषय, बनाता विष, कहते हैं।

सत्‍य मार्ग है कठिन, अमिय बनता, मुश्किल से,
इसीलिए विष, रहता ज्‍यादा, गढ़ ढहते हैं।

संस्‍कार मिटते, अप संस्‍कृति, होती हावी,
रहते मन उद्विग्‍न खिन्‍न तब, तन सहते हैं।

ध्‍यान, योग, व्‍यायाम, मनन, चिंतन हो ‘आकुल’,
जीवन में ये पंचामृत ही, विष दहते हैं ।

 

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