18 जून 2019

सारी रात जगे प्यारे अब, देख सवेरा फिर (गीतिका)

छंद- विष्‍णुपद सम मात्रिक
विधान- 16, 10 अंत गुरु वाचिक से.
पदांत- फिर
समांत- एरा

सारी रात जगे प्यारे अब, देख सवेरा फिर
बँध कर रहते जो खतरों ने, उनको घेरा फिर.


कौन सगा है कौन करेगा, हाली अपनी अब,
पेड़ नहीं बस्ती में होगा, घोर अँधेरा फिर.


बचपन ने झूलों पर अपने, पैर सँभाले थे,
कम होते ही खतरा कुछ दिन, का ही डेरा फिर.


पवन सुगंधित भी बहती थी, लौरी गा-गा कर,
कोयल मैना बुलबुल करती, दिन भर फेरा फिर.


पंख लगे उड़ जाता आखिर, समय दिहाड़ी है,
बच्चे भी उड़ जायेंगे दे, घाव घनेरा फिर.


फिर क्यों नीड़ बनायें, पालें, ढोंग धतूरे अब,
चल, माया का खेल खेलना, है किस्‍मत को फिर.


चल दे चलें नीड़ जीवन दो, दिन का है मेला,
कोई तो आयेगा करने रैन बसेरा फिर.

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