छंद- शिव (मात्रिक)
विधान- 11 मात्रा-(संयोजन-
3,3,3,2) 3,6,9 पर लघु. चरणांत सगण/ मगण/नगण (112/222/111)
पदांत- रहे अमर
समांत- इका
श्रीगणेश
स्मरण कर, मुक्तिका रहे अमर,
नित्य
तू लिखे अगर, गीतिका रहे अमर.
तू
करे न सृजन वो, शब्द में न वजन हो.
कथ्य शिल्प हो अगर, तूलिका रहे अमर.
छंद शिल्प बिन जहाँ, काव्य ना सरस वहाँ
सूत्र
में बँधे अगर, वर्तिका रहे अमर.
है
युगीन यह प्रथा, दे प्रकाश वह यथा
क्षुण्ण
हो नहीं अगर, अर्चिका रहे अमर.
देख
तू अतीत तब, गद्य-पद्य प्रीत सब,
शास्त्र
विहित है अगर, उक्तिका रहे अमर.
शारदे
का भजन हो, और नित्य सृजन हो,
सिद्ध
शुद्ध हो अगर, मात्रिका रहे अमर.
स्थापित
हों छंद सब, गीत गान वृंद अब,
सृजन
नंद हो अगर, अंतिका रहे अमर.
अर्चिका- प्रकाश किरण, उक्तिका- काव्य मय भाव
मात्रिका- छंद में मात्रायें,
अंतिका- तुकांत रचनायें.
मुक्तिका-
गीतिका, तूलिका, वर्तिका- लेखनी.
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