9 जून 2019

रोज सबसे सलाम हो जाये (गीतिका)


छंद- पारिजात
मापनी- 2122 1212 22
पदांत- हो जाये
समांत- आम

रोज सबसे सलाम हो जाये.
मुस्‍कुराहट इनाम हो जाये.

खुशनसीबी इसे कहेंगे हम,
घूमने का मुकाम हो जाये.

तू जगाए सुबह सवेरे नित,
वक्‍त भी तब गुलाम हो जाये.

वो अलग है कभी अगरचे ही
मेढ़की को जुकाम हो जाये.   

जी सदा यूँ अलग-थलग सबसे
जिंदगी तू न आम हो जाये

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें