छंद-
मल्लिका छंद (वार्णिक)
मापनी-
21 21 21 21
पदांत-
0
समांत-
आर
प्यार
से बड़ा न धर्म
कर्ज
से बड़ा न भार
जिंदगी
मिली सशर्त,
मौत
है मिली उधार.
देव
की मिली न योनि
क्यों
बने रँगा सियार.
सूर्य
में न देख अग्नि,
धूप
से मिटें विकार.
जिंदगी
उदारता व
सद्विचार
से सँवार.
जन्म
क्यों हुआ न सोच,
वर्तमान
को सुधार.
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