छंद-
विधाता
पदांत-
होता है
समांत-
आन
करे
या ना करे कुछ भी पिता को ध्यान होता है.
पिता
में धीर माँ में र्धर्य का सम्मान होता है.
पिता
हों उग्र या हों व्यग्र, माँ शीतल बनी रहती,
समर्पण
अग्रणी माँ का पिता अनुदान होता है.
सहज
माँ जैसा’ आकर्षण पिता से देर से होता,
जनम
से इंद्रियों का ही दिया संज्ञान होता है.
सदा
तत्पर पिता पर माँ सदा ही सख्त है देखी,
मगर
घर में पिता का उच्चतर ही स्थान होता है.
सभी
माता-पिता बच्चों की’ खुशियों से भरें झोली
कई
खुशियों की’ खातिर सुख का’ भी बलिदान होता है.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें