छंद-
विष्णुपद सम मात्रिक
विधान-
16, 10. अंत गुरु से.
पदांत-
शुद्ध करें
समांत-
अल
नहीं
प्रदूषण का प्रभाव हो, परिमल शुद्ध करें.
अपकर्मों
से शहर बस्तियाँ, त्रस्त हैं गाँव डगर,
इतनी
तो हो कोशिश सबकी, कलिमल शुद्ध करें.
लगा
सकें यदि वृक्ष नहीं तो, उन्हें उजाड़े क्यों,
पर्वत
भी दृढ़ रखें हृदय को, जंगल शुद्ध करें.
अप्राकृतिक
उपयोग बढ़ रहे, खान-पान बिगड़ा,
साँस
साँस हो रही प्रदूषित, हर पल शुद्ध करें.
घर
में लें उपयोग सभी जो, मिलें प्राकृतिक हों,
रखें
सहेज घरों में सब्जी, सब फल शुद्ध करें.
परिशीलन
हो संस्कार और, परम्पराओं का,
रही
ढील क्यों मंथन कर अब, प्रतिफल शुद्ध करें.
सर्वधर्म
समभाव सही, पर कुछ परिवर्तन हों,
जनसंख्या
पर करें नियंत्रण, तब कल शुद्ध करें
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