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22 नवंबर 2022
जो काया है
10 नवंबर 2022
हाथ क्यों फिर दर्द में धरते नहीं
9 नवंबर 2022
एक समय था
मुक्तक (छंद आल्ह)
8 नवंबर 2022
जंगल की सैर
जंगल में हम घूमे खूब ।
वहाँ नहीं थी कोमल दूब ।।पेड़ों की ना जात जमात ।
झूम रहे थे सब मिल साथ ।।
खुला कहीं मैदान नहीं था ।
पर जंगल सुनसान नहीं था ।।कलरव करते पक्षी देखे ।
हिरण चौकड़ी भरते देखे ।।कहीं शेर की सुनी दहाड़ ।
कहीं हाथियों की चिंघाड़ ।।फल फूलों से पेड़ लदे थे।
खाने को तब मन ललचे थे।।तरह तरह के बंदर देखे ।
दरियाई घोड़ा भी देखा ।
खाकी कठफोड़ा भी देखा ।।बब्बर शेर, तेंदुआ चीता ।
सैर करी जंगल की जबसे ।
सोच रहा हूँ जाने कब से ।।कितने है स्वच्छंद यहाँ सब ।
चिड़ियाघर में कैद रहेंगे ।
इन्हें मिले आजादी ज्यादा ।
7 नवंबर 2022
पुस्तक- कुंडलिया छंद संग्रह 'तन में जल की बावड़ी'
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लेखक का परिचय |
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पुस्तक- कुंडलिया छंद संग्रह |
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छंदकार श्री राकेश मिश्र |
मौसम देता दंड है
छप्पय
छंद
1
विक्षोभों से आज, कहीं मौसम बदले हैं।
कहीं बर्फ की मार, समंदर भी मचले हैं।
वक्रदृष्टि को देख, न समझे मौसम मानव।
अहंकार में मस्त बना बैठा है दानव ।
मौसम कोई भी रहे, क्या गर्मी क्या ठंड है।
जो चलता विपरीत है, मौसम देता दंड है।
2
होता इंद्रियनिष्ठ रखे जो मन को वश में।
होता वही बलिष्ठ रखे जो तन को वश में।
समझदार इनसान, रखे प्रजनन को वश में।
पंचतत्व व्यवहार, रखे जीवन को वश में।
होड़ प्रकृति से सर्वदा, जीवन में करना नहीं।
पंचतत्व का संतुलन, जोड-तोड़, सपना नहीं।
6 नवंबर 2022
नहीं नारी अगर बेपीर होगी
वहाँ फूटी हुई तकदीर होगी ।
मगर दिन चार ही जागीर होगी ।
कहीं लैला कहीं वह हीर होगी ।
महकमे हैं जहाँ वह मीर होगी ।
सही में साफ अब तसवीर होगी ।
मुहब्ब्त में कभी तासीर होगी ।