7 मार्च 2017

'गीतिका है मनोरम सभी के लिए'


हाल ही में 'मुक्‍तक लोक' ई-समूह द्वारा गीतिका संकलन 'गीतिका है मनोरम सभी के लिए' प्रकाशित हुआ है. उसमें मेरी दो गीतिकाएँ एवं एक मुक्‍तक प्रकाशित हुए हैं. पुस्‍तक में 90 रचनाकारों को सम्मिलित किया गया है. इससे पूर्व मुक्‍तक लोक समूह द्वारा 'विहग प्रीति के' प्रकाशित किया गया था. हाल ही में प्राप्‍त इस गीतिका संकलन ''गीतिका है मनोरम सभी के लिए' में मैं भी सम्मिलित हूँ. पृष्‍ठ 75-76 पर मेरी रचनायें प्रकाशित हैं.'मुक्‍तक लोक' समूह के संस्‍थापक-संचालक प्रो. विश्‍वंभर दयाल शुक्‍ल संचालित मुक्‍तक लोक गीतिका संकलन' के तत्‍वावधान में यह संकलन स्‍वयं प्रो. शुक्‍ल, श्रीमती कान्ति शुक्‍ला और श्री अरुण अर्णव खरे द्वारा संपादित है. उद्भावना प्रकाशन, गाजियाबाद से प्रकाशित 192 पृष्‍ठीय लाइब्रेरी संस्‍करण पुस्‍तक का मूल्‍य 200 रुपये है.पुस्‍तक का ISBN No. 978-93-85428-33-3 है.

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