15 जनवरी 2018

मन हो स्‍वस्‍थ निरोगी काया (गीतिका)

छंद- चौपाई मात्रा भार 16, अंत गुरु.
पदांत- काया.
समांत- ओगी.    

मन हो स्‍वस्‍थ निरोगी काया.
मानव तन संयोगी काया.

अपनी दिनचर्या साधोगे,
चाहो जैसी होगी काया.

भोजन से पहले पानी को,
पीते उनकी जोगी काया.

मध्‍य पिये जल जो भी प्राणी,
बनती उसकी भोगी काया.

अंत कभी बस पिये न ‘आकुल’
बन जाएगी रोगी काया.

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें