8 जनवरी 2018

कर प्रेम ही तू अब मानव (गीतिका)


छंद- किरीट सवैया
मापनी- 211 (भगण ) x 8
पदांत- रे बस
समांत- अब
 
हाथ रहे वह काम करें पहले फिर काम करें सब मानव/.
बाद कहीं कब काम हुए जब हाथ लगें करले तब मानव/.

बात न हों कब बातन की पत जाय न झूठ टिके कितने मिति,
साँच को' आँच नहिं सब ही यह याद रखें सच को कब मानव.

लाम रहो हर बार न बाहर भीतर आफत आय कभी यदि,
प्रेम जहाँ न चले लड़ना न पड़े बल संधि करें जब मानव.

नीति यही कहती जग में न चला कर आफत लें मिलती क्षति,
जो लड़ना हि पड़े भगना न कभी सँग में रहता रब मानव.  

‘आकुल’ सीप समुद्र उलीच सकी कब, कौन रहा अवनीपति,
राज रहे न रहे गढ़ प्रेम रहे कर प्रेम ही’ तू अब मानव.

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