छंद- किरीट सवैया
मापनी-
211 (भगण ) x 8
पदांत-
रे बस
बाद
कहीं कब काम हुए जब हाथ लगें करले तब मानव/.
बात न
हों कब बातन की पत जाय न झूठ टिके कितने मिति,
साँच
को' आँच नहिं सब ही यह याद रखें सच को कब मानव.
लाम
रहो हर बार न बाहर भीतर आफत आय कभी यदि,
प्रेम
जहाँ न चले लड़ना न पड़े बल संधि करें जब मानव.
नीति
यही कहती जग में न चला कर आफत लें मिलती क्षति,
जो
लड़ना हि पड़े भगना न कभी सँग में रहता रब मानव.
‘आकुल’
सीप समुद्र उलीच सकी कब, कौन रहा अवनीपति,
राज
रहे न रहे गढ़ प्रेम रहे कर प्रेम ही’ तू अब मानव.
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