छंद-
पियूष पर्व
पदांत-
वर्ष हो
समांत-
आता
सुख
प्रदाता अन्नदाता, वर्ष हो
जीविका
के स्रोत लाता, वर्ष हो.
प्रेम
अरु सौहार्द के पल-छिन बढ़ें,
आय
भी सबकी बढ़ाता वर्ष हो.
एक
ही चिंता है’ सरहद के परे,
खौफ
अरु डर को मिटाता वर्ष हो.
खूँ
न सरहद पर बहाता वर्ष हो.
इस
प्रदूषण, संक्रमण से जूझते
चर
अचर सबका विधाता वर्ष हो
खौफ
में जीए न प्राणी मात्र अब
शांति
का पैगाम लाता वर्ष हो.
पंचतत्वों
में प्रमुख हैं यूँ सभी ,
भूमि,
जल, वायू बचाता वर्ष हो.
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