गीतिका (अपदांत/स्वैच्छिक)
प्रदत्त विषय- ◆दासता की बेड़ियाँ ◆
छंद- आल्ह
शिल्प विधान- मात्रा भार- 31, 16, 15 (चौपाई+चौपई) पर
यति, अंत 21 से.
बेटी हो, नारी हो, या हो, बाल श्रमिक बंधे मजदूर.
गाँव शहर ढाणी में ढूँढ़ो, शायद मिलें नशे में चूर.
इसी दासता की बेड़ी ने, रोका है हमको हर वक्त.
रही सदा हर दम ही दिल्ली, भय के ही साये में दूर.
तीन तलाक, नीरजा से भी, बन न सके हम यदि चैतन्य,
फिर लुटते दिख जाएगी हर, मोड़ निर्भया इक मजबूर.
शिक्षा से घर-घर में फैले, जीने की भी बदले सोच,
अब न कहीं भी फलने पायें, कुप्रथाएँ अंधे दस्तूर.
हरे भरे खलिहान खेत हों, धरती की बदले तकदीर,
अभयारण्य, बढ़ें हो दुगुनी, प्रकृति सम्पदाएँ भरपूर.
जाग्रति तब आएगी जब हर, प्राणी बनता दिखे समर्थ,
जीवन बस संघर्ष नहीं हो, चमके अब वह दूर सुदूर.
चलो आज संकल्प करें हम, नये साल में हो यह सोच,
होगा अब उत्थान राष्ट्र का, हो ‘’श्रमेव जयते’’ मशहूर.
प्रदत्त विषय- ◆दासता की बेड़ियाँ ◆
छंद- आल्ह
शिल्प विधान- मात्रा भार- 31, 16, 15 (चौपाई+चौपई) पर
यति, अंत 21 से.
बेटी हो, नारी हो, या हो, बाल श्रमिक बंधे मजदूर.
गाँव शहर ढाणी में ढूँढ़ो, शायद मिलें नशे में चूर.
इसी दासता की बेड़ी ने, रोका है हमको हर वक्त.
रही सदा हर दम ही दिल्ली, भय के ही साये में दूर.
तीन तलाक, नीरजा से भी, बन न सके हम यदि चैतन्य,
फिर लुटते दिख जाएगी हर, मोड़ निर्भया इक मजबूर.
शिक्षा से घर-घर में फैले, जीने की भी बदले सोच,
अब न कहीं भी फलने पायें, कुप्रथाएँ अंधे दस्तूर.
हरे भरे खलिहान खेत हों, धरती की बदले तकदीर,
अभयारण्य, बढ़ें हो दुगुनी, प्रकृति सम्पदाएँ भरपूर.
जाग्रति तब आएगी जब हर, प्राणी बनता दिखे समर्थ,
जीवन बस संघर्ष नहीं हो, चमके अब वह दूर सुदूर.
चलो आज संकल्प करें हम, नये साल में हो यह सोच,
होगा अब उत्थान राष्ट्र का, हो ‘’श्रमेव जयते’’ मशहूर.
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