शिल्प विधान- मात्रा भार 22. 13, 9
पर यति अंत 2 गुरु
पदांत- है
समांत- अना
सब को अमृतकलश मिले, यह चाहना है.
लक्ष्मण रेखा कष्ट की, अब लाँघना
है.
कामना है यही बूँद, दो मिलें चाहे.
फिर भी भवितव्य उसका, ही’ सँवारना
है.
बना न सका वामांगी, अर्द्धांगिनी
जो,
आदमी जिसने सदैव, दी ताड़ना है.
हमने तो बाँटी सदा, अमृत की बूँदें,
उसकी भ्रष्ट करने की, क्यों भावना
है.
जन्म देना ही होगा, नव पीढ़ियों को,
शायद हो अवतार अब, संभावना है.
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