आधार
छंद- ताटंक
चलो ढूँढ़ते हैं बैठी हो, खुशियाँ घर के कोने में.
जिसने पीया घाट-घाट का, पानी उनसे पूछो तो,
शिल्प
विधान- मात्राभार- 30. 16,14 पर यति अंत
3 गुरु से अनिवार्य.
समांत-
ओने
पदांत-
में
चलो ढूँढ़ते हैं बैठी हो, खुशियाँ घर के कोने में.
कहीं
बीत जाये न जिंदगी, यूँ ही रोने-धोने में.
हम
सब ही अकसर मौकों को, अहम् चले हैं देते खो,
कभी-कभी
मिल जाती हैं कुछ, चीजें ओने-पोने में.
जिसने पीया घाट-घाट का, पानी उनसे पूछो तो,
कभी-कभी
खुशियाँ पाने से, ज्यादा मिलती खोने में.
नहीं
चाह चाँदी-सोने की, और न छप्पनभोगों की,
कुछ
को खुशियाँ मिल जाती हैं, खा के पत्तल-दोने में.
बने
दूध से दही मिले जब, मक्खन छाछ बिलोयें जो.
ढूँढ़ो
तो मिल जाते ईश्वर, कण-कण, कोने-कोने में.
जैसे
साल नहीं रुकता, खुशियाँ भी नहीं रुकें रोके,
खो
जाती हैं खुशियाँ जिन को, मिलती खुशियाँ सोने में.
हाथ
मिला कर निकलो चाहे, मुट्टी भर खुशियाँ ही हों,
देर
नहीं है ‘आकुल’ मानो, सपनों के सच होने
में.
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