20 जनवरी 2018

क्‍यों लगता है हम मिले हैं (गीतिका)

आधार छंद- सरसी 
शिल्‍प विधान- मात्रा भार 28. 16,12 पर यति, अंत 2 गुरु वाचिक 
पदांत- से 
समांत- अम
 
क्‍यों लगता है कि हम मिले हैं, आप से आप हम से.  
क्‍यों लगता है पास हो क़दम, जब जाते हैं थम से.

दूरियाँ वही, न देख कर भी, लगा तुम्‍हें है देखा, 
इस आभासी-दुनिया की भी, क्‍या बात है क़सम से.

चाँद सूरज चलते हैं सदा, लगता है क्‍यों ऐसा,
इस सच से कि चलती है धरा, न निकल पाए भ्रम से.

लगता ही तो है मिलते हैं, क्षितिज पर धरती गगन,
क्‍या हो पाएगा मिलन कभी,  कैसे लिखूँ क़लम से.

तभी तो जुड़े हैं ‘आकुल’ सभी, दुनिया से आभासी,
होता है आभास बचे हैं, शायद किसी सितम से.



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