छंद-
पियूष निर्झर
मापनी-
2122 2122 2122
पदांत-
क्या कहोगे
समांत-
अले देख कर भी जो न सँभले क्या कहोगे?
आँख वह हर बार बदले क्या कहोगे?
मन हमारा क्यों न
वश में आज तक भी,
देख कर हर चीज मचले
क्या कहोगे?
खर्च ज्यादा आय कम
हैं खर्च फिर भी,
कर रहा, आदत न बदले
क्या कहोगे?
आदमी इंसान में अब
फर्क करना,
व्यर्थ, चर्चायें व
मसले क्या कहोगे?
मौन है धरती प्रकृति
सहती प्रदूषण,
मौन है मानव न सुध
ले क्या कहोगे?
भूल बैठे हैं पसीना,
श्रम सभी हम,
बीच चौराहे में
फिसले क्या कहोगे?
कोशिशें होती नहीं
हैं आँधियों सी,
हो रहे हैं पार हमले
क्या कहोगे?
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें