31 जुलाई 2024

सागर तक पहुँचा आऊँ मैं ही संदेश

गीतिका
छंद- निश्‍चल
विधान- प्रतिचरण 23 मात्रा । 16, 7 पर यति अंत गुरु-लघु
अपदांत, समांत- एश

सागर तक पहुँचा आऊँ मैं, ही संदेश।
सावन आया मेघावलियाँ, करें प्रवेश।

प्रकृति, विभिन्न प्राणियों का यह, भू है स्वर्ग,
नृत्य दिखाऊँ, तुम्हें रिझाऊँ, जलधि निधेश,

पवन चले अब शीतलता के, झौंके संग,
छा जाएँ अब श्याम घटाओं से व्योमेश।

रातें उमस भरी तड़पाए, दिन में धूप,
कृपा नहीं है बदस्तूर है ताप दिनेश ।

हम निरीह प्राणी हैं भुगतें आज प्रकोप,
बने न अब प्रलयंकारी स्थिति, प्रभू जलेश।

बाढ़, दरकते पर्वत, आँधी, अतिवृष्टि से,
अब है चाह बहे सुख सरिता, हे नीरेश।

करो रवाना मेघावलियों को, अब शीघ्र,
कहीं न सूखा हो धरती पर, अब लवलेश।

29 जुलाई 2024

मकड़ी रानी

मकड़ी रानी मकड़जाल से
अब तो बाहर आओ ।
मुझे सीखना है बुनना
यह सुंदर जाल बताओ ।
क्‍या यह सच है तुम को आता
नहीं निकलना बाहर ?
कैसे जीती हो खाती हो
कब जाती हो तुम घर ?

मकड़ी बोली मेरा भोजन
कीट पतेंगे सारे ।
जो फँस जाते इसमें आकर
भोजन बनें हमारे ।
देख-देख कर बुनना सीखा,
नहीं निकलना सीखा,
यहीं रोज आ कर सीखो तुम
घर हैं यही हमारे।

26 जुलाई 2024

सम्‍बंधों न सरोकारों की, बात करें

गीतिका 
छंद- रास
विधन- प्रति चरण मात्रा 22। 8,8,6 पर यति. अंत लघु गुरु.
पदांत- की बात करें
समांत- आरों

सम्‍बंधों न सरोकारों की, बात करें। 
दुनियाभर के दरबारों की, बात करें।

जैसा राजा वैसी जनता, की मुश्किल,
अपराधों की भरमारों की, बात करें।

सत्‍ता, बदले इज्‍जत टाँगें, खूँटी पर,
गाली, जूतम-पैजारों की, बात करें।

पिछली सत्‍ता ने कितना भी, सही किया,
धुले नहीं वे भी सारों की, बात करें।

साम दाम अरु दंड, भेद की, नीति चलें,
राजनीति में बस नारों की, बात करें।

लोकतंत्र में पैठ न दल बल, बिन बनती,
उमराओं रसूखदारों की, बात करें।

देखा, सुना, पढ़ा, भोगा है, सच्‍चाई,
’आकुल’ से बस इन चारों की, बात करें।

23 जुलाई 2024

कृत्रिमता से बचना होगा

गीतिका
प्रदत्त शब्द- कृत्रिम
छन्‍द– अड़ि‍ल्‍ल
विधान- प्रति चरण 16 मात्रा। चौपाई की तरह ही, अंत दो गुरु से।
त्रिकल के बाद त्रिकल जरूरी, चार चौकल श्रेष्ठ।
पदांत- होगा
समांत- अना
कृत्रिमता से बचना होगा।
सरोकार अब रखना होगा।
प्रकृति विदोहन बहुत हो चुका,
वृक्षारोपण करना होगा।
ग्रीन ऊर्जा उत्सर्जन को अब,
कष्ट हमें भी सहना होगा।
प्लास्टिक अब है जहर समझ लें,
उन्मूलन को जुड़ना होगा।

जीवन शैली ऐसी हो बस,
संयम अधिक बरतना होगा।
शुद्ध हवा, भोजन पानी हो,
खुद भी तनिक बदलना होगा।

कृत्रिमता का अब मुखड़े से,
आज मुखौटा हटना होगा।
आकुल, कोटा, मुक्तक-लोक

22 जुलाई 2024

हार का जश्‍न भी मनाना है

गीतिका
छन्‍द– पारिजात
मापनी- 2122 1212 22
पदांत- है
समांत- आना

कुछ न बोलो यही जमाना है.
बढ़ केआफ़त गले लगाना है.

धैर्य इनसान आजकल भूला  
भूल होगी उसे सिखाना है.

सब दिखावे केरह गये रिश्‍ते,
सोच कर ही उन्‍हें निभाना है.  

दूसरों के लिए जिए थोड़ा,  
दर्द में मुँह नहीं छिपाना है।

हर समय जीतना नहीं मुमकिन
हार का जश्‍न भी मनाना है.


20 जुलाई 2024

मिले पकोड़ों के कुनबे से

http://www.anubhuti-hindi.org/sankalan/2food/garam_pakode/geet/Aakul.htm

                        मिले पकौड़ों के कुनबे से

 
 मिले पकौड़ों के कुनबे से गए एक पिकनिक
सुनी बात रुक कर के चुपके से उनकी चिकचिक

गोभी, मिर्ची, मटर, पनीर
आलू, की थी अपनी पीर
चटनी हरी, टमैटो सॉस
फुलबड़ि‍यों की भी थी भीड़
बढ़े हाथ लेने को मचले मिली खुशी हार्दिक

दर्द हमारा आँसू उनके
खाए गर्मा-गर्म
नहीं सोचता है कोई क्यूँ
क्या है धर्म-अधर्म
रौरव नर्क मिला कुछ को कम कुछ को जरा अधिक

चटनी, ने भी दर्द किया फिर
बयाँ सभी के बीच
पीसा हमें निचोड़ा नीबू
सहा आँख को मींच
तुमसे मिल कर गले पिसेगें फिर दाँतों में क्विक

बच जाओ तो कहना घर या
त्योहारों शादी में
खुश रहना जीवन में करना
शोक न बरबादी में
परहित हो तो द्वंद्वयुद्ध में फिर कैसी झिकझिक

- आकुल
१ जुलाई २०२४
अनुभूति जुलाई 2024 के 'पकौड़ेे विशेषांक' में प्रकाशित गीत 


 

19 जुलाई 2024

अपराध कुकुरमुत्‍ते जैसे, रोज बढ़ रहे।

गीतिका
छंद- शक्तिपूजा
विधान- 16, 8 पर यति अंत लघु गुरु/गुरु लघु/ लघु लघु लघु  हो सकते हैं। यति के बाद अठकल हो।  
पदांत- रहे
समांत- अढ़

अपराध कुकुरमुत्‍ते जैसे, रोज  बढ़ रहे।
विद्यार्थी भेड़ चाल जैसे, आज पढ़ रहे।

विश्‍वास अब परीक्षाओं पर,  चोट कर रहा,
कीर्तिमान हम जनसंख्‍या के,  आज गढ़ रहे।

ऑनलाइन शॉपिंग मॉल व मार्ट आधुनिक,  
भाव जीएसटी थोपने से, आज चढ़ रहे।

परिवार छोटे, संस्‍कार अब, टँगे खूँटियों,
लोग दोष अब मोबाइल पे, नित्‍य मढ़ रहे।

आधुनिकता ने सभी को अब, भरम है दिया ,
आकुल के’ भी गुबार अब तो, खूब कढ़ रहे ।

18 जुलाई 2024

इक नदी भीतर मेरे बहती, रही।

गीतिका
छंद- नरहरि
विधान- प्रति चरण 19 मात्रा 16, 3 पर यति। अंत लघु गुरु।
पदांत- रही
समांत- अती  
इक नदी भीतर मे'रे बहती, रही।
दर्द मेरा आँख से झरती, रही।
प्यास बुझाई सभी की स्‍वयं, मगर,
आग सीने में लिए जलती, रही।
जंग, बाढ़, तूफानों, बारिश, सभी,
आफतों में आज तक बचती, रही।
रौद्ररूप प्रकृति ने दिखाए, घने,
पीढ़ि‍यों की गलतियाँ ढकती, रही।
रह न जाएँ स्‍वप्न अब मेरे, धरे,
बंधनों में बँध के' भी सजती, रही।
देवियों को पूजते मुझको, सता,
सबका मान हर जगह रखती, रही।
यातना नारी नदी ‘आकुल, कहे,
मौन सहती भाग्‍य को पढ़ती, रही।

14 जुलाई 2024

पेड़ से इंसान की किसमत बनी है

गीतिका
छंद- पियूष निर्झर
विधान/मापनी- 2122 2122 2122
पदांत- है
समांत- अनी

पेड़ से इंसान की किसमत बनी है।
कद्र ना करने से उससे ही ठनी है।

पेड़ ने फल फूल पत्‍ते लकड़ि‍याँ दीं,
शुद्ध सब दे संग छाया दी घनी है।

आज कागज अरु किताबें वृक्ष से ही,  
ढेर सुख सुविधा से किस्‍मत का धनी है।

वृक्ष रोपें पौध ढेरों हम लगाएँ,
आपदा से फैल जाती सनसनी है।

आदमी को चाहिए अब वृक्ष पाले,   
जिंदगी यदि चैन सुख से काटनी है

12 जुलाई 2024

ना समाज बिन जात-पाँँत के

गीतिका
छंद- सिंह विलोकित  
विधान- प्रति चरण 16 मात्रा। आदि गुरु से,  अंत लघु गुरु से।
पदांत- के
समांत- आँत

ना समाज बिन जात-पाँत के।
धर्म नहीं बिन रीत भाँत के। 

साग फसल काटें गाँवों में,
मिलते ना घर बिन दराँत के ।

पत्‍तों की नस से बनते हैं
धागे कहलाते हैं ताँत के ।  

भोजन हो स्‍वादिष्‍ट भले ही,  
नीरस हे बिन जीभ दाँत के ।

स्‍वस्‍थ अगर रहना हो आकुल,
रोगी ना हों पेट, आँत के।

7 जुलाई 2024

माँ शारदे अब तार दे, मम लेखनी को धार दे

 गीतिका

छंद- हरिगीतिका
मापनी- 2212 2212 2212 2212
पदांत- दे
समांत- आर
** 
माँ शारदे अब तार दे, मम लेखनी को धार दे।
वाणी बने सफला करूँ रचना सुखी संसार दे।
**
संस्कारधानी हों शहर, शिक्षित हो अब हर बस्तियाँ,
नवपीढियों में देश के प्रति गर्व हो संस्कार दे।
**
हो अतिक्रमण पर सख्तियाँ, पर्यावरण के प्रति सजग,
जग में प्रदूषण दूर हो, भू को हरित शृंगार दे ।
**
नव कल्पना नव चेतना से रूप निखरे देश का,
जन जन समर्पित हो सदा, प्रति राष्ट्र के विस्तार दे।
**
उपलब्ध हों जीवन उपार्जन को व्यवस्थाएँ सरल,
हर वर्ग को व्यवसाय या सेवा का अवसर चार दे।
**
सन्नद्ध हो नारी रहे अब आत्मनिर्भर हर जगह,
श्रद्धा स्वरूपा थी युगों से आदमी अब प्यार दे।
**
आकुल नियंत्रण हो, न हो विस्फोट जनसंख्या रुके,
सद्बुद्धि दे, सामर्थ्य दे हो इक सुखी परिवार दे।

4 जुलाई 2024

भुतहा नहीं हवेली बस, बंद यह पड़ी है

गीतिका 
भुतहा नहीं हवेली बस, बंद यह पड़ी है।
करते हुए प्रतीक्षा चुप-चाप यह खड़ी है।

प्राचीर है किले सी हैं, द्वार भी तिलिस्मी,
आमद नहीं कहीं से इक, ईंट न उखड़ी है।

बात सच हुई है 'आकुल', बारह वर्षों में,
कहते हैं घूरे की भी, किसमत उघड़ी है।

इक षोडषी नवेली ने, खोल द्वार देखा,
खुश है देख घर को लगी, आँख से झड़ी है।

वही चौक तिबारी वही, तुलसी का चौरा,
धूल अँटी भीत पर एक, तस्वीर जड़ी है।

धूल चढ़ी पगड़ी़, बास्कट, बैंत खूँटियों पर ,
लालटेन फूटी, कोने, पड़ी पलँगड़ी है।

इस घर ने फिर बचपन का, याद दिलाया सब,
कल से आज की जोड़नी, कड़ी से कड़ी है।

2 जुलाई 2024

क्षिति जल पावक गगन समीर

गीतिका
छंद- चौपई
पदांत- 0
समांत- ईर

क्षिति जल पावक गगन समीर।
पंचतत्‍व से बना शरीर।1।

रखना मानव इन्‍हें सम्‍हाल,
रख न सके तो सहना पीर।2।

वृक्ष काट मत करो उजाड़,
वृक्ष हैं धरती की जागीर।31

जल को नहीं बहाना व्‍यर्थ,
जीवन जलना तय बिन नीर।4।

दावाग्नि, जठराग्नि बड़वाग्नि,
सदा बनाती जगत अधीर।5।

नभ है अंतरिक्ष का मार्ग,
मानव जाते उसको चीर।6।

पवन समीर हवा के रूप,
साँसों पर इनकी तासीर।7।

1 जुलाई 2024

डॉक्‍टर्स डे है बस उन्‍हें सम्‍मान दें

1
गीतिका
आधार छन्द- मधुवल्लरी
मापनी- 2212 2212 2212
पदांत- दें
समांत- आन
‘डाक्टर्स डे है बस उन्हें सम्मान दें।
अपमान हो ना बस सदा यह ध्यान दें।1।
<>
विश्वास हो यदि तो नहीं संशय रखें,
उनकी सुनें उनको कभी ना ज्ञान दें।2।
<>
नि:स्वार्थ जो देता सदा ही जिंदगी,
ईश्वर सदृश सर्वोच्च पद स्थान दें।3।
<>
डॉक्टर बिना जब काम संभव ही न हो,
अफवाह पर हम व्यर्थ क्यों फिर कान दें।4।
<>
’आकुल’ न हों बस भ्रष्ट डॉक्टर भी स्वयं,
सर्वत्र वे भी स्वच्छ निज पहचान दें।5।
2
दोहा गीतिका
चिकित्सक दिवस
आज चिकित्सक दिन मने, उनका कर सम्मान।
चलते हैं वे अग्निपथ, रख जीवन का ध्‍यान।1।

व्यर्थ सभी सुख सम्‍पदा, यदि तन मन अस्‍वस्‍थ,
स्‍वस्‍थ बदन में राजते, कहते हैं भगवान्।2।   

सर्वे संतु निरामया,  उनका है यह ध्‍येय,
जन्म-मृत्यु तो आज भी, विधि हाथों में जान।3।

देता जो नि:स्‍वार्थ ही, नवजीवन की भेंट,
कर न सके यदि मान तो, मत कर तू अपमान।4।

हों कृतज्ञ इनके सदा, जीवन में रख सोच,
करते यही निदान हैं, देते ये मुस्‍कान।5।
3
चिकित्सक दिवस पर दोहे
आज चिकित्सक दिन मने, उनका कर सम्मान ।
चलते हैं वे अग्निपथ, रख जीवन का ध्‍यान ।।

व्यर्थ सभी सुख सम्‍पदा, यदि तन मन हैं म्‍लान ।
स्‍वस्‍थ बदन में राजते, कहते हैं भगवान् ।।  

सर्वे संतु निरामया,  इनका कर्म प्रधान ।
जन्म-मृत्यु तो आज भी, विधि हाथों में जान ।।

देता जो नि:स्‍वार्थ ही, नवजीवन का दान ।
कर न सके यदि मान तो, मत कर तू अपमान ।।

हों कृतज्ञ इनके सदा, कर इनका गुणगान ।
करते यही निदान हैं, देते ये मुस्‍कान ।।