12 जुलाई 2024

ना समाज बिन जात-पाँँत के

गीतिका
छंद- सिंह विलोकित  
विधान- प्रति चरण 16 मात्रा। आदि गुरु से,  अंत लघु गुरु से।
पदांत- के
समांत- आँत

ना समाज बिन जात-पाँत के।
धर्म नहीं बिन रीत भाँत के। 

साग फसल काटें गाँवों में,
मिलते ना घर बिन दराँत के ।

पत्‍तों की नस से बनते हैं
धागे कहलाते हैं ताँत के ।  

भोजन हो स्‍वादिष्‍ट भले ही,  
नीरस हे बिन जीभ दाँत के ।

स्‍वस्‍थ अगर रहना हो आकुल,
रोगी ना हों पेट, आँत के।

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