गीतिका
छंद- हरिगीतिका
मापनी- 2212 2212 2212 2212
पदांत- दे
समांत- आर
माँ शारदे अब तार दे, मम लेखनी को धार दे।
वाणी बने सफला करूँ रचना सुखी संसार दे।
**
संस्कारधानी हों शहर, शिक्षित हो अब हर बस्तियाँ,
नवपीढियों में देश के प्रति गर्व हो संस्कार दे।
**
हो अतिक्रमण पर सख्तियाँ, पर्यावरण के प्रति सजग,
जग में प्रदूषण दूर हो, भू को हरित शृंगार दे ।
**
नव कल्पना नव चेतना से रूप निखरे देश का,
जन जन समर्पित हो सदा, प्रति राष्ट्र के विस्तार दे।
**
उपलब्ध हों जीवन उपार्जन को व्यवस्थाएँ सरल,
हर वर्ग को व्यवसाय या सेवा का अवसर चार दे।
**
सन्नद्ध हो नारी रहे अब आत्मनिर्भर हर जगह,
श्रद्धा स्वरूपा थी युगों से आदमी अब प्यार दे।
**
आकुल नियंत्रण हो, न हो विस्फोट जनसंख्या रुके,
सद्बुद्धि दे, सामर्थ्य दे हो इक सुखी परिवार दे।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें