29 अगस्त 2024

सदा तूफ़ान आँधी के तबाही संग आती है

ग़ज़ल
बह्र का नाम - बह्रे हजज मुसम्‍मन सालिम
बह्र - मुफाईलुन मुफाईलुन मुफाईलुन मुफाईलुन
रदीफ़ – है
का़ाफ़ि‍या – आती
 
सदा तूफ़ान आँधी के तबाही संग आती है।
मुहब्‍बत बिन इबादत के, निबाही कम ही’ जाती है।
 
रहें चैनो अमन से तो नहीं हों देश में झगड़े,
लड़े जब भी सदा देखा मिला ही रँग जमाती है।

कभी पिसती कभी बॅटती है नारी की भी क्‍या किस्‍मत,
कहीं पीसो, कहीं बाँटो हिना तो रंग लाती है। 
 
कहीं घूमर, कहीं भँगड़ा, कहीं गरबा कहीं गिद्दा,
अगर हो ताल मस्‍ती की तो’ बस ढफ चंग छाती है।

जहाँ ऐसा बनाएँ अब जहाँ ना हो जबरदस्‍ती,
कहीं हो ना अदावत और ना हुडदंग घाती हो।

रँगे हैं खून से इतिहास के पन्‍ने कई ‘आकुल’,
सियासत सरहदों पे तो सदा ही जंग लाती है।   

28 अगस्त 2024

घिरा है आग की लपटों से भारत

 गीतिका

छंद- विधाता
मापनी- 1222 1222 1222 1222
पदांत- होगा
समांत-अना
 घिरा है आग की लपटों से भारत साधना होगा ।
लगी भीतर भी' है इक आग यह तो मानना होगा।
 
अभी तो लुट रही हैं नारियाँ इक दिन लुटोगे तुम,
सम्‍हल जाओ रहो इकजुट कि अरि को हाँकना होगा।
 
न बंदरबाँट की हो अब सियासत वोट की खातिर,
न आरक्षण न गणना जाति खूँटी टाँगना होगा।
 
न हो अब शंख की ध्‍वनि कर्णभेदी बाँसुरी के स्‍वर,
न ऐसा हो कि फिर ध्‍वज का सुदर्शन थामना होगा।

छॅटें अब युद्ध के बादल प्रकृति से हो यही विनती,
बजे बस चैन की बंसी ये’ संकट टालना होगा। 


19 अगस्त 2024

जीवन में बनना संस्‍कारी, जैसे भी हो

गीतिका
छंद- आवृत्तिका/सार्द्ध चौपाई  
पदांत- जैसे भी हो
समांत- आरी

जीवन में बनना संस्‍कारी, जैसे भी हो।
संस्‍कारों से बनना भारी, जैसे भी हो।

क्षिति, जल, पावक, गगन, समीरा, मूल जगत् के,
इनका रहना तू बलिहारी, जैसे भी हो।

सदा बोलना मीठी बोली, जब भी बोले,
बोली से  न लगे चिनगारी, जेसे भी हो।

पंच इंद्रियों से है तन की, शोभा न्‍यारी,
इनसे ना हो बस लाचारी, जैसे भी हो।

खुशी मनाते छोटी-छोटी, अपनों के सँग,
गुजरे बस जीवन की पारी, जैसे भी हो ।

17 अगस्त 2024

इस जिह्वा में विष अमरित दोनों रहते हैं

गीतिका 
छंद- आवृत्तिका / सार्द्ध चौपाई
विधान- प्रतिचरण 24 मात्रा, 16, 8 पर यति, अंत दो गुरु वाचिक से। 
पदांत- हैं
समांत- अहते 

इस जिह्वा में विष अमरित दोनों रहते हैं।
रस कोई भी हो जिह्वा से, ही बहते हैं।

बोली, प्रवचन, व्‍यक्‍त करेंगे, इससे जैसा
अंकुश ना हो विषय, बनाता विष, कहते हैं।

सत्‍य मार्ग है कठिन, अमिय बनता, मुश्किल से,
इसीलिए विष, रहता ज्‍यादा, गढ़ ढहते हैं।

संस्‍कार मिटते, अप संस्‍कृति, होती हावी,
रहते मन उद्विग्‍न खिन्‍न तब, तन सहते हैं।

ध्‍यान, योग, व्‍यायाम, मनन, चिंतन हो ‘आकुल’,
जीवन में ये पंचामृत ही, विष दहते हैं ।

 

16 अगस्त 2024

वंदन हो साष्‍टांग, झुका कर शीष नमन हो

रोला गीतिका
विधान- 11, 13 पर यति। विषम चरणांत गुरु-लघु, सम चरणांत दो गुरु वाचिक
पदांत- हो
समांत- अन

वंदन हो साष्‍टांग, झुका कर शीष नमन हो ।
कर से करें प्रणाम, विनय पट बंद नयन हो।

राम राम के संग, तनिक मुसकान बिखेरें,
मान, पान अरु पुष्‍प, हार से अभिनन्‍दन हो।

भजन कीर्तन जाप, प्रफुल्लित मन को करते,
ईश्‍वर का हो ध्‍यान, सिद्ध हर एक वचन हो।

ऐसे हों संस्‍कार, पीढ़ि‍याँ इनको सीखें,
चिन्‍तन मन्‍थन और मौन रह सदा मनन हो।

बस ना हो अपमान, रखें सौहार्द सभी से,
सम्‍यक हो व्‍यवहार, यही जीवन दर्शन हो। 

15 अगस्त 2024

पर्व स्वतंत्रता दिवस मनाएँ


माँ को भारती को नमन करते हुए स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएँ।

देशभक्ति गीत
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स्वतंत्रता दिवस मनाएँ
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देशभक्ति गीत
स्वतंत्रता दिवस मनाएँ
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चलो भूल, शिकवे उलाहना, पर्व स्वतंत्रता दिवस मनाएँ।
आज तिरंगा गाँव-गाँव पथ, शहर-शहर घर-घर फहराएँ।

याद करें उनके बलिदानों की कहानियाँ किस्से दिन भर,
गायें उन गीतों को जिनने भरा हौसला जिनके दम पर,
कैसे पाई आजादी उन वीर शहीदों के दम सुन कर
उगलें विष चाहे कितने ही सर्प सदा फुफकारें, तन कर
कर्मठ, वीर न डिगते पथ से क्यों न कृतघ्न कह्र बरपाएँ।
आज तिरंगा गाँव-गाँव पथ, शहर शहर घर-घर फहराएँ।

बीत गई वो बात गई, खोया तो बढ़ कर ही है पाया।
खेल, कला, संस्कृति, तकनीकी जग में है परचम फहराया।
महिलाएँ अब सजग, सशक्त, समर्थ और शिक्षित हो उभरीं,
कोई क्षेत्र नहीं जिसमें ना पहुँचीं हैं प्रभुत्व दिखलाया।
मातृभूमि पर वीराओं ने वारे पूत वह कथा सुनाएँ ।
आज तिरंगा गाँव-गाँव पथ, शहर शहर घर-घर फहराएँ।
आतंकवादियों भितरघातियों के दंगे अब ना सहना है।
दुष्कर्मियों, घूसखोरों, भ्रष्टों के अब हर गढ़ ढहना है।
देशप्रेमियों, नव पीढ़ी को आज जरूरत है अवसर की,
महँगाई जनसंख्या पर अंकुश हमको करके रहना है।
रोज़गार के अवसर हर तबके को दे कर खुशियाँ पाएँ।
आज तिरंगा गाँव-गाँव पथ, शहर शहर घर-घर फहराएँ।

ले संकल्प सभी कुछ हर घर आज देश का मान बढ़ाएँ।
प्रकृति मुसकुराए धरती पर इतने सारे पौध लगाएँ।
त्योहारों का देश हमारा, हर दिन होली दीवाली से,
गले मिलें हर पर्वोत्सव पर फिर क्यों मन से वैर न जाएँ?
योग ध्यान चिंतन मंथन हो संत-समागम पथ दिखलाएँ।
आज तिरंगा गाँव-गाँव पथ, शहर-शहर घर-घर फहराएँ।
चलो भूल, शिकवे उलाहना, पर्व स्वतंत्रता दिवस मनाएँ।

14 अगस्त 2024

कब तक हम आजादी का यूँ, जश्‍न मनाएँगे?

कब तक हम आजादी का यूँ, जश्‍न मनाएँगे?
बढ़ते आक्रोशों के यक्ष प्रश्‍न दबाएँगे,

मुड़ कर देखें चहूँ दिशाएँ हवा नहीं सुरभित,
क्‍या कागज़ के फूलों से निधिवन सजवायेंगे ?
कब तक हम..........

द्रोपदियाँ लुट रहीं देखते दु:शासन तांडव,
अभी न कोई कृष्‍ण यहाँ है विवश भद्र पांडव,
द्यूत शकुनि का अंध बने धृतराष्‍ट्र कई बैठे,
भीष्‍म धराशायी होगें चीखेंगे कारंडव,
कितनी आहुतियों से कब तक हवन कराएँगे?
कब तक हम..........

घर घर में फहराएँ झंडा चलो और इक बार,
नहीं शत्रु का दंभ मिटेगा गठबंधन सरकार,
और एक महाभारत के हैं अब आसार यहाँ,
घिरा हुआ भारत है भीतर-बाहर हाहाकार, 
कोविध अपनी संस्‍कृति का वटवृक्ष लगाएँगे?
कब तक हम..........

प्रकृति ढा रही कह्र मच रही चीख पुकारें,
मुफ्त योजनाओं से दिवालिया हैं सरकारें,
नहीं दवायें, वेतन, रोजगार से दुखी प्रजा,
फिर हारी है जनता फैलाती भ्रम सरकारें,
जन हुतात्‍माओं के क्‍या अब बुत लगवायेंगे?
कब तक हम ..........

कब तक हम आजादी का यूँ, जश्‍न मनाएँगे?



13 अगस्त 2024

जिएँ सभी खुशी खुशी, न हो विषाद प्रेम में

गीतिका
छंद- पंचचामर (वर्णिक)
पदांत- प्रेम में
समांत- आद  

न हो कटाक्ष बात में, न हो विवाद प्रेम में।
जिएँ सभी खुशी खुशी, न हो विषाद प्रेम में।

करें विचार व्‍यक्‍त वो, न हो तनाव व्‍यर्थ ही,
न हो विरुद्ध धर्म के न हो जिहाद प्रेम में।

कहीं कभी दुराव हो लगाव हो तनाव हो,
बढ़े न दूरियाँ कभी न हो प्रमाद प्रेम में ।

न शर्त हो, न दाँव हो, छले नहीं, न खेल हो, 
असीम हो, न बंध हो न हो मियाद प्रेम में।

कभी कहीं नसीब से मिले कभी मिले नहीं,
पवित्र भेंट ईश्‍वरीय है मुराद प्रेम में ।   

12 अगस्त 2024

बस बारिश हो धरती पर।

छंद- शील (वर्णिक)
मापनी- 112 112 112 11
पदांत- पर
समांत- अती

अब आतिश सी सखती पर।
बस बारिश हो धरती पर।

अब धूप न राहत दे कुछ
घर जंगल में बसती पर।

लगता यह जीवन शापित,
रहते धरती तपती पर।

अब मेघ करें नित बारिश,
हद गर्म हवा चलती पर,

हर ओर चले मलयानिल,
नव कानन हों जगती पर।

11 अगस्त 2024

झट न्‍याय मिले गलती पर

गीतिका
छंद- शील (वर्णिक)
मापनी- 112 112 112 11
पदांत- पर
समांत- अती  

अपराध घटें सखती पर।
झट न्‍याय मिले गलती पर।

पटरी पर आ सकते दिन
अब स्रोत बढ़ें भरती पर।

हर चीज मिेले अब वाजिब
कम हों महँगी बिकती पर।  

अब काम करे हर मानव
मत आय रखे गिनती पर।

मिटती हर चीज यहाँ नित,  
यह प्रीत नहीं मिटती पर।