छंद- द्विगुणित प्रमाणिका (वार्णिक)
मापनी- 12 12 12 12, 12 12 12 12
पदांत- दे चलो
समांत- आर
सभी जुटो विकास को, नवीन धार दे
चलो.
सँभालिए वसुंधरा, हरी भरी रहे सदा,
न आ सके खिजाँ यहाँ सदा बहार दे चलो
न पीढ़ियाँ असभ्य हों, व हो नगण्य
रूढ़ियाँ,
स्वदेश के लिए अगण्य जाँ निसार दे
चलो.
न कर्मनिष्ठ भ्रष्ट हों न एकनिष्ठ
रुष्ट हों
सभी को दंड-संहिता का एतबार दे चलो.
जहाँ सभी जरूरतों की चीज छूट से
मिले,
समीप बस्तियाँ बसीं वहाँ बजार दे
चलो
प्रभू करे न शत्रु सामने न युद्ध
थोप दे,
मशाल और गीत क्रांति के हजार दे
चलो.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें