छंद-
आनंदवर्धक
छंद लिख पाये न लिख, स्वच्छंद तू,
व्यर्थ लिख कर व्यर्थ का तू, श्रम न कर.
जो लिखा इतिहास के, पन्ने बनें,
धार तू अपनी कलम की, कम न कर.
बात पर रह दृढ़ अगर, वह सत्य है,
राह तब स्वीकार तू, मध्यम न कर.
लेखनी से चोट हो तो, वक़्त पे,
वक़्त से पहले कभी भी, दम न कर.
मौन से अकसर, महाभारत हुए,
फट पड़े ज्वालामुखी, अतिक्रम न कर.
मापनी
2122 2122 212
विधान-
10, 9 पर यति और अंत गुरु स्पष्ट रूप से हो तो वह ‘पियूष पर्व’ छंद कहलाता है,
किंतु यदि यति का निर्वहन न हो पाये और अंत गुरु के स्थान पर दो लघु से हो तो वह
छंद आनंदवर्धक कहलाता है. पर मापनी का
निर्वहन आवश्यक.
पदांत-
न कर
छंद लिख पाये न लिख, स्वच्छंद तू,
व्यर्थ लिख कर व्यर्थ का तू, श्रम न कर.
जो लिखा इतिहास के, पन्ने बनें,
धार तू अपनी कलम की, कम न कर.
बात पर रह दृढ़ अगर, वह सत्य है,
राह तब स्वीकार तू, मध्यम न कर.
लेखनी से चोट हो तो, वक़्त पे,
वक़्त से पहले कभी भी, दम न कर.
मौन से अकसर, महाभारत हुए,
फट पड़े ज्वालामुखी, अतिक्रम न कर.
लेखनी से तू कभी
ना, दर्द दे,
जो न कर पाये भलाई, ग़म न कर.
जो न कर पाये भलाई, ग़म न कर.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें