31 जनवरी 2019

लिख सके हो कर निडर लिख, भ्रम न कर (गीतिका)

छंद- आनंदवर्धक
मापनी 2122 2122 212
विधान- 10, 9 पर यति और अंत गुरु स्‍पष्‍ट रूप से हो तो वह ‘पियूष पर्व’ छंद कहलाता है, किंतु यदि यति का निर्वहन न हो पाये और अंत गुरु के स्‍थान पर दो लघु से हो तो वह छंद आनंदवर्धक कहलाता है.  पर मापनी का निर्वहन आवश्‍यक.
पदांत- न कर
समांत- अम 

लिख सके हो कर निडर लिख, भ्रम न कर.
लेखनी बस भ्रष्ट तू, हमदम न कर.

छंद लिख पाये न लिख, स्वच्छंद तू,
व्यर्थ लिख कर व्यर्थ का तू, श्रम न कर.

जो लिखा इतिहास के, पन्ने बनें,
धार तू अपनी कलम की, कम न कर.

बात पर रह दृढ़ अगर, वह सत्य है,
राह तब स्वीकार तू, मध्यम न कर.

लेखनी से चोट हो तो, वक्‍़त पे,
वक़्त से पहले कभी भी, दम न कर.

मौन से अकसर, महाभारत हुए,
फट पड़े ज्वालामुखी, अतिक्रम न कर.

लेखनी से तू कभी ना, दर्द दे,
जो न कर पाये भलाई, ग़म न कर.

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