छंद- विष्णुपद
विधान- 16, 10 पर यति, अंत गुरु से
पदांत- है
समांत- अता
किसके साथ बुरा गुजरेगा, कौन जानता है?
करता है क्यों भविष्यवाणी, क्यो बखानता है?
जैसी करनी वैसी भरनी, अकर्मण्य का भाग्य ,
कैसी आस्था पत्थर को भी, पूज्य मानता है?
संस्कारों से ही पहचाने, जाते धर्म सभी,
सर्वधर्म समभाव नहीं क्यों, नहिं समानता है?
पथ अपने मन का ही चल कर, जीवन है जीता,
उत्तरदायित्वों से वह क्यों, दूर भागता है?
बंधुत्व, सखाई, रिश्तों की, साख कसौटी पर,
मानव ही मानव से’ शत्रुता, क्यों निकालता है?
पंचतत्व से बनी सृष्टि फिर, उदासीन क्यों वह,
प्रकृति की क्यों हालत मानव, नित बिगाड़ता है?
यक्ष प्रश्न कितने हैं रह कर, मौन न निकले हल,
मरने से पहले मरना कब, कौन चाहता है?
विधान- 16, 10 पर यति, अंत गुरु से
पदांत- है
समांत- अता
किसके साथ बुरा गुजरेगा, कौन जानता है?
करता है क्यों भविष्यवाणी, क्यो बखानता है?
जैसी करनी वैसी भरनी, अकर्मण्य का भाग्य ,
कैसी आस्था पत्थर को भी, पूज्य मानता है?
संस्कारों से ही पहचाने, जाते धर्म सभी,
सर्वधर्म समभाव नहीं क्यों, नहिं समानता है?
पथ अपने मन का ही चल कर, जीवन है जीता,
उत्तरदायित्वों से वह क्यों, दूर भागता है?
बंधुत्व, सखाई, रिश्तों की, साख कसौटी पर,
मानव ही मानव से’ शत्रुता, क्यों निकालता है?
पंचतत्व से बनी सृष्टि फिर, उदासीन क्यों वह,
प्रकृति की क्यों हालत मानव, नित बिगाड़ता है?
यक्ष प्रश्न कितने हैं रह कर, मौन न निकले हल,
मरने से पहले मरना कब, कौन चाहता है?
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