छंद- शक्ति
मापनी- 122 122 122 12
मुहब्बत है इंसान की शायरी.
दिलों पर करे राज़ ये बावरी.
ख़ुदा की न कुदरत की कारीगरी.
मुहब्बत है इंसान की शायरी.
कभी नज़्म महफिल में घायल हुई.
ग़ज़ल से कभी बज्म ग़ाफ़िल हई.
जहाँ काफ़ियों का रदीफों का डर,
वहीं पर ग़जल बन फिरी बेबहर.
न जागीर इसको लुभा पाई है
न सरहद ज़ुदा इसको कर पाई है
ज़माना फ़क़त ज़ुल्म ढाता रहा,
मुहब्बत ही ज़ख़्मों को भर पाई है
न मंज़ूर इस को है गिरदावरी.
दिलों पर करे राज ये बावरी.
खुदा की न कुदरत की कारीगरी.
मुहब्बत है इंसान की शायरी.
मुहब्बत है इंसान की शायरी.
खिलाये हैं उसने ही बाग़ और चमन
यहीं ज़न्नतों के बसे हैं नगर.
यहीं पर हैं जंगल हज़ारों डगर.
उसी ने बसाई हैं घर-बस्तियाँ.
यहीं उसने की खुल के खर-मस्तियाँ.
क़जा से कभी ख़ौफ़ खाया नहीं.
ज़ुबाँ पर कभी उफ़ भी आया नहीं.
इसी ने बहारों की परवा करी,
दिलों पर करे राज ये बावरी.
खुदा की न कुदरत की कारीगरी.
मुहब्बत है इंसान की शायरी.
मुहब्बत है इंसान की शायरी.
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