8 जनवरी 2019

जिसने हर खाई को पाटा (गीतिका)

छंद- सार
अपदांत/समांत- आया
विधान- चौपाई+12. अंत 22

घर में चारों तरफ देख मैं, हर दम समझ न पाया.
मेरी हर हरकत पर जिसने, हँस कर गले लगाया.

उँगली पकड़ सिखाया चलना, बैठाया कंधे पर,
रोते हुए गोद में लेकर, थपकी दे बहलाया.

घर में जो भी थे, उन सबको, मैं जाना आँखों से,
सबसे ज्‍यादा साथ मिला था, मात-पिता का साया.

पिता संग जाकर दुनिया की, देखी रौनक सारी,
अप्रतिम थी माँ की खुशबू था, आँचल सुख सरमाया.

घर जिसके दम पर था माँ थी, पिता छत्र छाया थे,
जिसने हर खाई को पाटा, रिश्‍तों को समझाया,  

बचपन से लेकर अब तक जो, शिक्षा सबने पाई,
आज वही जीवन में उनके, दम पर कुछ कर पाया.

माँ है धुरी गुरुत्‍वाकर्षण, जनक सृष्टि का द्योतक,
जग में सर्वाधिक आकर्षण, मात-पिता का भाया.

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