छंद- सार
विधान- विधान- चौपाई+12. अंत 22
पदांत- जायें, समांत- अते
छंद- सार
विधान- विधान- चौपाई+12. अंत 22
पदांत- जायें, समांत- अते
पढ़ते गुनते जो जीवन में, लेखक लिखते जायें.
लेखक अनुभव को लिखते हैं, समय बदलते जायें.
भौतिक जगत शोरगुल ओढ़े, विचलित करता मन को,
विजन ढूँढ कर लेखक अप्रतिम, सत्य विरचते जायें.
सृष्टि सिंधु में जितने भी हैं, शब्द दिये लेखक ने,
कलम कलाधर शब्द सुनिधि को, क्षण क्षण भरते जायें.
भाग्यवान होते समृद्ध
भी, कलम बढ़ाती ताकत,
करते हैं पथदर्शन उनका, अगर भटकते जायें.
शब्दकोश के शब्द अमर हैं, जीर्ण शीर्ण ना होते,
कहीं मिले निर्वस्त्र शब्द तो, उसको ढकते जायें.
जीवन कम है अगली पीढ़ी, याद रखे मुझको भी,
ऐसी दूँ सौगात जगत् को,
प्रोन्नत करते जायें.
सबको मिलती नहीं योग्यता, रस लिखने की ‘आकुल’
बाँझ नहीं हो सृजन निरंतर ,लिखें निखरते जायें.
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